बिजौलिया का मंदाकिनी मंदिर:: 13वीं शताब्दी में बना ऐतिहासिक शिव धाम,जहां राजा के 108 तिलों से जुड़ी है शिवभक्ति की रहस्यमयी कथा
ललित चावला बिजौलिया | 13 Oct 2025
बिजौलिया। राजस्थान की वीरभूमि पर स्थित बिजौलियां न केवल शौर्य की धरती है,बल्कि यह आस्था और इतिहास का जीवंत प्रतीक भी है। इसी पवित्र भूमि पर स्थित है मंदाकिनी मंदिर,जो 13वीं शताब्दी में बना एक अद्भुत धरोहर स्थल है। ऊपरमाल क्षेत्र के सैंड स्टोन से निर्मित इस मंदिर की पत्थर की नक्काशी और बारीक मूर्तिकला आज भी देखने वालों को मंत्रमुग्ध कर देती है।
मंदिर परिसर में स्थित महाकालेश्वर धाम की सबसे बड़ी विशेषता है द्वारपाल के रूप में स्थित खड़े गणेश जी और कार्तिकेय जी की दुर्लभ प्रतिमाएं। चार हाथों वाले गणपति जी के एक हाथ में मोदक, दूसरे में गदा,तीसरे में लड्डुओं से भरा थाल और चौथे में कमंडल है,नीचे मूषक भी उकेरा गया है। वहीं, कार्तिकेय जी की शिल्पकला भी अत्यंत आकर्षक है। पास ही स्थित हजारेश्वर महादेव मंदिर में करीब चार फीट ऊंचा शिवलिंग स्थापित है,जिस पर एक हजार छोटे शिवलिंग उकेरे गए हैं,इसी कारण इसका नाम हजारेश्वर पड़ा। मंदाकिनी कुण्ड के पास ही स्थित उण्डेश्वर महादेव मंदिर को वर्षा की कामना लिए नगर वासियों द्वारा कुंड के पानी से भरा जाता है और शिवकृपा से आश्चर्यजनक रूप में बरसात होती भी है।
महाकालेश्वर मंदिर के बाहर लगी चमत्कारी स्टैंडिंग गणेश की प्रतिमा
मंदाकिनी कुंड,जहां सालभर जल भरा रहता है,आज भी श्रद्धालुओं के लिए पवित्र स्नानस्थल है। किंवदंती के अनुसार उज्जैन-धार के एक राजा के शरीर पर 108 तिल थे। अपनी व्याधि से मुक्ति पाने वह शिवनगरी बिजौलिया पहुंचे और जंगम साधु के कहने पर मंदाकिनी कुंड में स्नान किया। चमत्कारिक रूप से उनके 107 तिल मिट गए। साधु ने आगे चलकर पूर्व दिशा में एक और कुंड में स्नान करने को कहा, जहां अंतिम तिल भी स्वाहा हो गया। वही स्थान आज तिलस्वां के नाम से प्रसिद्ध है।
राजा ने अपने वचन अनुसार 108 मंदिरों का निर्माण करवाया। मगर औरंगजेब के शासनकाल में कई मंदिर ध्वस्त कर दिए गए,फिर भी मंदाकिनी मंदिर आज भी भक्ति, इतिहास और कला का जीवंत प्रतीक हैl
कहते हैं,जो श्रद्धा से मंदाकिनी कुंड में स्नान कर महाकालेश्वर के दर्शन करता है, उसकी सभी व्याधियां दूर होकर मन को शांति प्राप्त होती है।